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साथ 
-© कामिनी मोहन पाण्डेय।

स्पर्श पानी-सा था 
अनंत युगों के सापेक्ष 
दिन की स्मृति और 
अंर्तमन की रात लिए 

इंतज़ार के सिलसिले 
दर-ब-दर की प्यास
रोज़ एक अहसा
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