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250. प्रेम के ग़ुंचे - कामिनी मोहन।

प्रेम की भाषा, प्रेम की बोली,
सदा सुकुमार हृदय की रंगोली।

आँख जो देखतीं, कान जो सुनतीं,
प्रेम-पुष्प चुन तरन्नुम बुनतीं।

धरा पर निर्झर सेवित प्रेम धार है,
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