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247. कामिनी मोहन के दोहे

जीवन कर दो सरल प्रभु, सुख-शांति रहे साथ।
कांपते क़लम से लिखूँ , डगमग नैया साथ।।1।।

खोल के आँखें देखो, सब खेल रहे खेल।
साँप सीढ़ी बना इंसाँ, रोके सबकी रेल।।2।।

अलग रंग के दिखे भले, रहे हमेशा पास।
सबमें प्रेम एका रहे, इतनी-सी बस आस ।।3।।

आओ मित्र देखो इधर, दीप नहीं अब दूर।
आगे  हम  बढ़ते  चले, अंधेरा  हुआ  दूर।।4।।

गुमसुम मन परदेस में, आया है मधुमास।
टूटा तन विरहणी का, कैसे मिटे संत्रास।।5।।

उस जैसा चैतन्य कौन, यहाँ मिले फ़नकार।
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