242.यहाँ सब अंधे और बहरे हैं!
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242.यहाँ सब अंधे और बहरे हैं! - कामिनी मोहन।

सब कहते हैं कि
हम सब सुन रहे हैं
हम सब देख रहे हैं
लेकिन नहीं, नहीं, नहीं
यहाँ सब अंधे और बहरे हैं!

सिर्फ़
मजहब, पंथ और सम्प्रदाय का
लबादा ओढ़ने के लिए
मनुष्य इस धरा पर ठहरे हैं!

यक़ीन नहीं
पर दिखता है
धार्मिक चोला और चिह्न की
सीमित भावना में
रहने को जीवन पर
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