
मैं,
पतझड़ में झरे पत्तों के नीचे;
प्रस्फुटित हूँ क्रांति की आग लिए,
सर्जनात्मकता की मातृभूमि की चिंगारी लिए
अनगिनत गुज़रते पाँवों के चिह्न जैसे उभरते दीए।
निशान छोड़े जाते हैं,
आँधी में जो दीप जलते रह जाते हैं।
एक नई चमक, उम्मीद की नई लहर
आहिस्ता-आहिस्ता बुझी आँखों में उभरते जाते हैं।
रक्त शिराओं स
पतझड़ में झरे पत्तों के नीचे;
प्रस्फुटित हूँ क्रांति की आग लिए,
सर्जनात्मकता की मातृभूमि की चिंगारी लिए
अनगिनत गुज़रते पाँवों के चिह्न जैसे उभरते दीए।
निशान छोड़े जाते हैं,
आँधी में जो दीप जलते रह जाते हैं।
एक नई चमक, उम्मीद की नई लहर
आहिस्ता-आहिस्ता बुझी आँखों में उभरते जाते हैं।
रक्त शिराओं स
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