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237.मानसिक प्रवाह की आँच - कामिनी मोहन।

वो प्रतिध्वनि जिसे पीछे छोड़ आए हैं,
उसे याद करने के सिवाय 
अनिश्चितता में उलझने के सिवाय 
अब तक, कुछ और कर नहीं पाए हैं। 

अनुकूल है 
या वाक़ई प्रासंगिक प्रतिकूल 
अपनी नियत को देखते हैं।
पदार्थों को हाथ में लिए खड़े हैं
स्मृति के तार से आ रही 
आवाज़ को चुपचाप सुनते हैं। 

जहाँ शब्दों को शांत किया है
वहाँ से कोई एक शोर लेकर आया करती हैं
एक धागा है जिसे कस के बांधा है
उसें तोड़ जाया करती हैं। 

धागे के टूटने पर भी दो सिरे हैं
दोनों किनारों की अपनी रवानियाँ है। 
उनकी कभी न बदलने वाली 
एक दूसरे से जुड़ी हुई प्रेम कहानियाँ है। 

जादू
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