233.घाव के धब्बे में समर
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233.घाव के धब्बे में समर - कामिनी मोहन।

एक ही तरह की रात में
गर्म फीके आसमान में
आभा से उभरे हुए प्रतिबिंब में
सबको मौखिक रूप से निगलने वाले उपहार देना
धुंधली रेखा के सामने बाहरी और भीतरी 
जहाँ हर दो बात के बाद होती है तीसरी बात
वहाँ ब्रह्माण्डीय शांति के प्रवाह की घात हेरना
है कई घंटों गहरे केवल समाधि की बात फेरना।

भीतर से घिरी हुई
त्रिविमीय अस्तित्व के आश्चर्य का लालित्य
और ज्ञान से परे बुद्धि का पाण्डित्य।
है बस सपनों को पूरा करने के लिए सपने देखना
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