226."कला मूलतः एक आत्मिक और नैतिक चेष्टा है"- © कामिनी मोहन।'s image
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226."कला मूलतः एक आत्मिक और नैतिक चेष्टा है"- © कामिनी मोहन।

ला स्वभाव से जन्मी एक नियमबद्ध अनुकृति है। यह सदैव मनुष्यकृत नियमों का समर्थन करती है और प्रकृति के सौन्दर्यात्मक पक्ष के सद्व्यवहार का अनुकरण करती है। यदि जीवन से कृत्रिमता को निकाल दिया जाय तो जो दृश्य रूप-रंग लेकर शोभायमान होता है, वह स्वत:स्फूर्त कला है। 

कला ही जीवनाशक्ति का परभृत प्रतिबिंब है। यह मूलतः एक आत्मिक और नैतिक चेष्टा है। भारतीय हिंदू शास्त्र परंपरा में 64 कलाओं की चर्चा है। सुख प्राप्त करने और निरंतर उसकी उन्नति किए जाने के पीछे जो मूल भावना है, वह धर्म की है। धड़कते धड़कन के साथ अंग-अंग की थिरकन लिए हुए भारतीय कला दुनियाभर में विख्यात है। भरतमुनि ने पंचम वेद कहे जाने वाले अपने नाट्य शास्त्र में 32 प्रकार के अंगहारों की गणना की है इसमें करण के 108 प्रकार है। सुंदर भावों द्वारा नृत्य के विराम रेचक के चार प्रकार है- पाद-रेचक, कटि-रेचक, तृतीय रेचक और चतुर्थ रेचक।

(कॉस्मिक डांसर) कहे जाने वाले शिव, (नटराज) नृत्य के प्रथम देव है और उनकी पत्नी पार्वती नृत्य की प्रथम देवी हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य की कुल नौ प्रमुख शैलियाँ हैं। उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में कत्थक, तमिलनाडु में भरतनाट्यम, केरल में कत्थकली, मणिपुर में मणिपुरी, उड़ीसा में ओडिसी, आंध्र प्रदेश में कुचीपुड़ी, असम में सत्त्रिया नृत्य, पूर्वी भारत में छऊ एवं केरल में मोहिनीअट्टम। शास्त्रीय नृत्यों में ताण्डव (शिव) और लास्य (पार्वती) के द्वारा दो प्रकार के भाव प्रकट होते हैं। 

अभिव्यक्ति नृत्य, इसमें कविता के छंदों के अर्थ को व्यक्त करने के लिए अंग, चेहरे के हाव-भाव, और हाथ के द्वारा व्यक्त मुद्राओं को शामिल किया जाता है। नाट्य या नाटक, इसमें अभिनय के चार तत्वों का एक विषय पर संवाद करने के लिए उपयोग होता है। अभिनय के चार तत्व हैं- (क) अंगिका या शारीरिक गतिविधियाँ

(ख) वाचिका या भाषण 

(ग) वेशभूषा, स्थान एवं गुण और

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