![217.कविता का विलाप
- © कामिनी मोहन।'s image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40kaminimohanjournalist/None/1675670023591_06-02-2023_13-23-47-PM.png)
हमारी पूर्णता हमारे अलावा
किसी और चीज़ से परिभाषित नहीं है।
क्षणभर में बदलता है सबकुछ
मनुष्य के लिए मनुष्य परिभाषित नहीं है।
मैं, तुम और वो सतर्क है फिर भी
आँखों की चमक को
आँखे देख न पाएँगी।
चीज़ें ख़ुद को जानने और
ख़ुद को बदलने में लग जाएँगी।
चलो सिर्फ़ चमकते टुकड़ों को जोड़ते हैं
लेकिन कितना भ
किसी और चीज़ से परिभाषित नहीं है।
क्षणभर में बदलता है सबकुछ
मनुष्य के लिए मनुष्य परिभाषित नहीं है।
मैं, तुम और वो सतर्क है फिर भी
आँखों की चमक को
आँखे देख न पाएँगी।
चीज़ें ख़ुद को जानने और
ख़ुद को बदलने में लग जाएँगी।
चलो सिर्फ़ चमकते टुकड़ों को जोड़ते हैं
लेकिन कितना भ
Read More! Earn More! Learn More!