208.स्त्री हो या कि पुरुष 

दोनों का जीवन एक जैसा- © कामिनी मोहन पाण्डेय।'s image
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208.स्त्री हो या कि पुरुष  दोनों का जीवन एक जैसा- © कामिनी मोहन पाण्डेय।

प्रेम में झगड़ा नहीं, कोई वैमनस्य नहीं, कोई दुश्मनी नहीं, कोई पृथकता नहीं, कोई ख़र्चा भी नहीं है। यह अति कोमल स्थिति है। सुरक्षा-असुरक्षा से परे की स्थिति है। प्रेम समझने की वस्तु नहीं है। यह दिमाग़ में आने वाली चीज़ भी नहीं है। 

विचार दुनिया भर में केवल उम्मीदों के महल खड़े कर सकता है। यह संघर्ष  दुविधा, मुसीबत की ओर ले जा सकता है। विचार में प्रेम हो यह ज़रूरी नहीं है। क्योंकि विचार चालाक होने के साथ-साथ स्वकेंद्रित हो जाए, इसकी पूरी संभावना बनी रहती है। लेकिन विचार के बग़ैर परिवर्तन की संभावना भी नहीं है। 

सभी का जीवन एक जैसा है। चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का हो। चूँकि इस दुखालय संसार में दुख दोनों को हैं, इसलिए पीड़ा भी दोनों के एक जैसे हैं। मनुज की मानवता दोनों से हैं। धरती पर उपस्थित प्रत्येक जीवधारी में अंतर सिर्फ़ देह का है। इस अंतर के कारण भेदभाव अनुचित है। मनुष्यों में स्त्री हो या कि पुरुष दोनों के जीवन का सार एक है। 

धरती पर दोनों के कर्म-विकर्म को लेकर संशय भी एक जैसे हैं। ऐसे में, स्त्री-पुरुष को लेकर अलग-अलग विचार और भावना रखना विभाजन खड़े करना है। क्योंकि धरती पर जीवन दोनों से हैं। परम्परा के पालनहार भी दोनों है। संसार में किसी बदलाव को यदि करना चाहे तो दोनों कर लेते हैं। हर तरह के त्याग, तपस्या और बलिदान करने में दोनों सक्षम है।

कोई किसी पर निर्भर नहीं है। लेकिन वर्चस्व की ग़लत सोच अलग-अलग देखने की दृष्टि देने लगती है। एक का शासन दूसरे पर होने लगता है। दोनों ही परिस्थितियाँ मानवता की विभाजनकारी प्रवृत्ति के कारण पनपे विचार को समाज के समक्ष रखने लगते हैं। इसलिए स्त्री और पुरुष दोनों को जीवन को समझने के लिए अपनी-अपनी मनोवृति में परिवर्तन लाना चाहिए। 

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