195. अँधेरे में दूरसंवेदन लिए
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195. अँधेरे में दूरसंवेदन लिए -  कामिनी मोहन।

मैं भावनाओं का मालिक हूँ,
मैं उनके बारे में सोच सकता हूँ।
लेकिन मैं बिना सोचे-समझे,
उत्पन्न हुए डर से डरता हूँ। 

जो पीछे छूट गए 
उनकी स्मृति में अलगाव देखता हूँ,
विलगाव देखता हूँ।
मैं डूबकर भी नहीं डूबता हूँ,
मैं महसूस करने को घूमता हूँ। 

छिप नहीं पाता हूँ,
अंतर्तम को उघेड़कर 
रक्त के जैसे बहता हूँ।
क्या उपयोगी है?
क्या अनुपयोगी है? 
समझ नहीं पाता हूँ। 

वर्षों से सिर्फ़ 
माचिस जलाने की आदत रखता हूँ।
ऐसी दूसरी किसी चीज़ की नहीं
सिर्फ़ आग की प्रतीक्षा करता हूँ। 

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