![191.बाज़ुओं के ज़ोर की पहचान
- कामिनी मोहन।'s image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40kaminimohanjournalist/None/1667892414635_08-11-2022_12-57-00-PM.png)
मौन की माला फिरती नहीं
भाव उभरकर बिखरती नहीं।
तपती दुपहरी में फूल सूख भी जाए
शब्दों की टोकरी कभी सूखती नहीं।
कठोर पाषाण जैसे
शब्दों से
शब्दों के गूँजते अर्थों से
है संवाद बस इतना,
हैं सामने उपस्थित सवाल जितना।
साधना-आराधना
पूर्णता-अपूर्णता के सवालों से
है उलझना उतना,
जवाब का है सुलझना जितना।
रोका गया,
टोका गया,
सिर पर आज़ादी का तमग़ा
ठोका गया।
भाव उभरकर बिखरती नहीं।
तपती दुपहरी में फूल सूख भी जाए
शब्दों की टोकरी कभी सूखती नहीं।
कठोर पाषाण जैसे
शब्दों से
शब्दों के गूँजते अर्थों से
है संवाद बस इतना,
हैं सामने उपस्थित सवाल जितना।
साधना-आराधना
पूर्णता-अपूर्णता के सवालों से
है उलझना उतना,
जवाब का है सुलझना जितना।
रोका गया,
टोका गया,
सिर पर आज़ादी का तमग़ा
ठोका गया।
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