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189. ज़िंदगी सड़क के किनारे - कामिनी मोहन।

ज़िंदगी सड़क के किनारे
गड़े खम्भों के सहारे
अन्धकार को दूर करने में लगी हैं।
दूर तक जाने के इंतज़ार में
आगंतुकों को एकटक देखने लगी है।

समय ने जो साँसे ले लिए हैं
अब उन ख़ाली जगहों में शब्द भर गए हैं।
कुछ मेरे इधर-उधर गिरे हुए हैं
कुछ रास्ते में ठोकर की तरह पड़े हुए हैं।

अस्तित्व के शब्द एक-एककर
दूर छोड़कर जाने को आतुर होने लगे हैं।
प्राण की क्रियाएँ सिर से पैर तक,
छाती के अंदरूनी पृष्ठों की
जागृति को मुक्त कर
शब्द बन प्रकट होने लगे हैं।

अँधेरे में जब सारी दीवा
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