197. जैसे शब्द अपने भीतर
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197. जैसे शब्द अपने भीतर -© कामिनी मोहन।

दूसरों के साथ बोलना
और बातचीत करना
सिर्फ़ संपर्क जानकारी का
आदान-प्रदान है
या कुछ और है।
इसकी अप्रासंगिकता अनिश्चित है
या प्रासंगिक सोच निश्चित है।

यह सच है कि
संघर्ष की सड़क पर
अकेले चलने पर ही
ख़ुद को समझा जा सकता है।
यदि जीवन केवल ख़ुद को
ठीक करने की प्रक्रिया है
तो उस प्रक्रिया से गुजरा जा सकता है।
वास्तव में,
मैं तुम और हम कौन है?
वास्तविक या आभासी
या कुछ और समझा जा सकता है।
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