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वागीश्वरी की नंदिनी

माँ शारदे की प्रीत थीं
बसती रहीं हर हृदय में, 
बन भोर की उद्गीत थीं ।

शिशुकाल में लोरी सुना
वो माँ सी मन पे छा गईं
हर यौवना को प्रीत धुन से
चाँद पर पहुँचा गईं<
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