
शिखर तक पहुँचने की लगी है जो एक होड,
कैसे कोई रख सकता इसमें सबको साथ जोड़
जो ढूँढने निकले हम इसका एक निराला सा तोड,
पता चला, केवल अपनी संस्कृति ही है इतनी बेजोड़ !!
देख हमें कह सकता कौन, प्राचीनतम संस्कृति है हम,
घनी तिमिराई में भी फैलाते उजियारा नवीनतम है हम,
हर दिन जहां उत्सव सा हैं हर दिल जिसमें जवाँ सा है,
प्रकृति का स्वागत करता आता साल इसमें नया सा है!!
दीप जलाते, रंग लगाते, भांति भांति से जश्न मनाते हम,
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