
कब तक दिल की आवाज़ को दबा के रख़ोगे
एक न एक रोज़ अश्कों का झरना छूट जाना है,
कब तक रोकोग़े खुद को मेरे पास आने से
आख़िर में तुम्हें मुझ में ही तो मिल जाना है,
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कब तक दिल की आवाज़ को दबा के रख़ोगे
एक न एक रोज़ अश्कों का झरना छूट जाना है,
कब तक रोकोग़े खुद को मेरे पास आने से
आख़िर में तुम्हें मुझ में ही तो मिल जाना है,