
सत कोटि नमन है भारत को,भारत में बसने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं,इस धरा धाम पर आने को।।
रिती निती पुनिति है ऋषियों ने, हर पावन पर्व बनाएं हैं,
बहु पुष्प खिले हर मौसम में, हरि के मन को तरसाएं है,
आभार व्यक्त मैं करता हूं,हर पर्व बनाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते है।।
नारायण को तो आना था,निश्चर तो एक बहाना था,
हर भाव प्रेम में भक्तों के संग,पावन पर्व मनाना था,
अब नमन उन्हें है जड़ चेतन, संग रास रचाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
यहां प्रेमसुधा रस मिलते हैं,ममता के हर एक आंचल में,
कालीख भी सुशोभित लगते हैं,हर एक बच्चों के आंखन्ह में,
मैं नमन करु हे मातृभूमि,तेरे आंचल अमृत वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
भूरी भूरी भाग्य है भारत का,जहां पर्वतराज हिमालय है,
जिसके आगोश में जल और जंगल, देवों के देवालय है,
देवालय में है नमन मेरा, आरती पे मचलने वाले को,
भगवान् लालाइत रहते हैं।।
सब स्वर्ग यही है फले