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अन्नदाता और वर्षा

आसमान में देख रे प्यारे

           बादल की बारात चली  है।

सहलाती- सी भीगी- भागी

           सावन की सौगात चली है।।


यह बारात जहाँ रुकेगी

         सींचेगी खेतों को तेरे।

गरज कङकती खेत मंडप में

          अब ये वर्षा ले

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