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शायद तू यही कह रही है

बीत जायेंगी रातें भी, दिन भी किसी बहाने से

गुजरेगी वो शाम कैसे जो गुजरी संग जमाने से

ज़िंदा लाश छोड़ गए तुम, कह कर कोई फसाना सा
लौट आओ गर हो सके तो करके कोई बहाना सा

मैं विरह में शायद तेरे, पलक झपकाना भूल गई
आंख सदा खुली रखती हूं, शायद मुझे मैं भूल गई

पहले भी जाने कितनी दफा, खोने से तुझे मैं खूब डरी 
नया नहीं है खेल तेरा ये, सांस तलक को हर बार मरी
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