
मरीज़ ए इश्क हूं तेरा मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
ज़हे बीमार रहने दे मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
हुसैनी खून है तुझमे तू है आल ए शहे बतहा
जमाना फैज़ पाता है तेरे दर से मुईनुद्दीन।
दिए ईमान का दौलत जो है आला ज़माने में
हैं नव्वे लाख को मोमिन किए ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
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