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उच्श्रृंखल अकविता


उच्श्रृंखल अकविता 


वो बहुतायत हैं, बहुत थे ,

और वे रहेंगे भी।

उनमें से हर एक आत्ममुग्ध है,

अक्सर अपनी अपनी बात करते हैं ।


लेकिन जैसे ही वो गिरोह में आते हैं,

गिरोह बंद हो जाते हैं।

वो एक दूसरे की तारीफ करने लगते हैं।

वो एक दूसरे का चेहरा मोहरा

चमकाने लगते हैं।


एक दूसरे के सर में 

तेल लगाकर चम्पी करते हैं,

पीठ खुजाते, और मालिश करते हैं।

गोड़ दबाने पड़ें तो दबातें हैं,

कभी कभी गोड़ भी पड़ जाते हैं।


एक दूसरे की तारीफ करके 

लोहालोट होते रहते हैं।

वो आत्ममुग्ध अपनी दुनिया में 

खोए रहते हैं।


कभी कभी वो अपनी दुनिया से&n

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