एक ग़ज़ल's image
यूँ तो सावन की फ़िज़ा कुछ और है
टूटे छप्पर की सदा कुछ और है।


आसमां खुद में मगन बेशक रहे
इस परिंदे की अदा कुछ और है।


 मन्ज़िलों की अब किसे परवाह है
Read More! Earn More! Learn More!