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वाहियात शेर...

अब तो मेरी हर बात पर सवालात उठाते हो,

कहते हो फजूल ख्यालात कहां से लाते हो,

जमा कर दिया है बेमतलब अरमानों का ढेर यहां,

उफ्फ! इतने वाहियात शेर कहां से लाते हो,


छोड़ गया जिसे छोड़ना था,

क्यों मेरे सर अब,

नया आसमान खड़ा करते हो,

अब क्यों उसकी घुटन में,

घुट-घुट सड़ा करते हो,


थाम लिया है हाथो में जाम,

दाम क्यों इस तरह खर्च करते हो,

आंखों में भर कर पानी,

हर पल होंठों से अर्ज करते हो,


हस्ती थी ना तुम्हारी,

क्यों पीछे उसके हंसते-हंसते गंवा दी,

हर महफिल की तुम महफिल थे,

महफिले तुम से ही तो जवां थी,


लफ

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