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मास्साब....

मास्साब की लकड़ी की कुर्सी,

कुर्सी के सहारे खड़ी लकड़ी की बेंत,

कुर्सी के पीछे दीवार पर लटका लकड़ी का श्यामपट्ट,

अब भी मुझे बहुत याद आता है,


लकड़ी का ही पेड़,

पेड़ की ही लकड़ी,

पेड़ के ठूंठ से बंधी घंटी,

और घंटी पर,

लकड़ी के हत्थे का बारम्बार प्रहार,

अब भी मुझे बहुत याद आता है,


बेमेल सी पंक्ति,

मास्साब का,

शीश से शीश मिला,

सीध साधना,

अब भी मुझे बहुत याद आता है,


इतनी शक्ति हमे देना दाता,

मन का विश्वास कमजोर हो ना,

प्रार्थना के साथ उमड़ता जोश,

जन-गण-मन अधिनायक जय ह

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