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कुछ ख़बर नहीं

खफा है कुछ खबर नहीं,

खामोश खाम सनम मेरा,

खुमार चढ़ा ख्वाहिशों का,

खरीद-फरोख्त खास जैसा,



गुजारी हमने जिंदगी खस्ताहाल,

गुमगश्ता है पर मेरा गुजीदा,

गोया है कि लबों पर,

मेरी फ़ज़ीहत है,

इश्क में चार दिन की चांदनी,

और बस हमारी कितनी हैसियत है,

जनाब! जाजिब था कमबख्त,

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