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गोली का खोल...

चौराहों पर पड़े खोल गवाह है अपराध के,

जो उसूल-ए-तहकीकात में पकड़े जाते हैं,

और कहते हैं कि 'माय बाप!'

हमारा अपराध में सहयोग यही तक था।

हमने ना आत्मा भेदी, न शरीर,

सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाले उस सामान को सहेजा,

जिसे लोग 'गोली' कहते हैं।

किसी सरफिरे-सनकी ने चोरी-छिपे खरीदा,

और बर्बादी सहेजने के बंदूक नामक वस्तु में गिन कर रख दिया,

लेकिन इन सबके बीच खोल

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