चौराहों पर पड़े खोल गवाह है अपराध के,
जो उसूल-ए-तहकीकात में पकड़े जाते हैं,
और कहते हैं कि 'माय बाप!'
हमारा अपराध में सहयोग यही तक था।
हमने ना आत्मा भेदी, न शरीर,
सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाले उस सामान को सहेजा,
जिसे लोग 'गोली' कहते हैं।
किसी सरफिरे-सनकी ने चोरी-छिपे खरीदा,
और बर्बादी सहेजने के बंदूक नामक वस्तु में गिन कर रख दिया,
लेकिन इन सबके बीच खोल
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