अंकुर बन सिंचित हो जाओ,
संकल्प की वीर भौम पर,
शीश उठाकर अंकुरित हो जाओ,
ह्रदय में उपजी विशाल वेदना पर,
सहों! सहनीय-सी प्रवृति तुम्हारी,
कितनी ही पीड़ाएं समेटे प्रकृति हमारी,
ऊंचाई से उठो, बनो तृण गिरि का,
बरसो बन बादल शिख गिरि का,
पार करो बाधा निज जीवन,<
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