मानवता खोएं,
इंसानों की बस्ती का,
मैं दरिद्र दरिंदा हूं,
रक्त टपके जिह्वा से मेरी,
मैं खूनी परिंदा हूं,
मैने खाएं हिंसा-फसाद,
नोंच-नोंच,
गली-मुहल्लों से,
और रक्त पिया,
बेजान निर्दोष लाशों से,
खोज-खोज,
पाया मैने ये प्रसाद,
असुरों के प्रासादों से,
एक अंधेरी रात को,
ताक-घात लगाएं,
सोच रहा मैं ये मर्म,
दूध के दांत तक न टूटे
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