ए खुदा रंजिश ही करनी
है, तो जरा पर्दे के
पार तो आ
मेरा दुश्मन दूसरी जहां
में कौन है बतला तो जा
हर रोज़ मुझे सत्ता के
जो चैन से जी रहा है
उस शख्स की अक्स क्या
है दिखला तो जा
सुना है तू हर किसी के बाड़े में सोचता है
तू ये क्या दोनों जहाँ की मुरादें पूरी करता है
अपने होने का कोई निशान बता तो जा
या जो है उन भरमो को मिटा तौ जा
ए खुदा एक बार ही सही झलक दिखला तो जा
तेरी सूरत कैसी किसी ने जानी नहीं
पर हर मूरत में तू बसता है यह बात सबने मानी सही
उन बूत बने पत्थरों के लिए हि सही
तू सच में है तो कभी सामने आ तो जा
सोचता हू सबसे कह दू तू कही दूर चला गया है
मेरा खुदा शायद अपने खुदा की तलाश में निकल गया है
पर सोचता हु झूठी ही सही कैसे किसी की उम्मीद छीन लू
क्या बताऊ की अब
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