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यारों ख़ामख़ा हम दरिया से लड़ते रहे

यारों ख़ामख़ा हम दरिया से लड़ते रहे 


ज़ख़्म-ए-नफ़रत भी यूँ ही कुरेदते रहे 


कश्ती ही थी झर-झर छेद अलग-से


यादृच्छिक पीड़ा में भी यूँ ही जलते रहे 


कटुता-वचनों-वाणी सीमाएँ तोड़ते रहे 


आपसी तनाव-ओ-सरहदें भी बाँटते रहे 


छूत-अछूता उच्च

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