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अपराजिता की तरह

उकेड़ लेती प्रिय तुमको

काश मैं अपनी कविता की तरह

बहता तुम्हारा प्रेम निश्छल सा

मेरे रोम रोम में सरिता की तरह

तुमको पाकर तुम में ही मैं

घुल जाती मैं तुम्हारे रंग में

प्रेम जो होता रा

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