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अनहद मोहब्बत

कोई चिंगारी न जला दे ज़माने को 

महफ़ूज़ रख दिल में आग ले कर चल रही हूँ

सुर्ख़ जो छींटे दिखते हैं मेरे शक्सियत पर

मैं तुम्हारे इश्क़ का दाग ले कर चल रही हूँ

हदें होती होंगी दुनिया के लिए मोहब्बत में

मैं जज़्बा अनहद का बेबाक ले कर चल रही हूँ

तंज़ करते हैं हमसाए भी रक़ीब भी

मैं नज़रंदाज़ का अन्दाज़ ले कर चल रही हूँ

पंख कतरते हैं वो जो बनते हैं ख़ैर ख़्वाह मेरे

मैं टूटे परों में समेट परवाज़ ले कर चल रही हूँ

मालूम है मुझको भी मुखौटे के पीछे एक एक शक़्स के नाम

 मौके पर खोलूँ मैं ऐसे कई राज़ ले कर च

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