
यहां हर एक घर में बैठा है पांडव
तेरी इज्जत पे दांव लगाने को....
और हर इक मोड़ पे खड़ा है कोई दुर्योधन
तेरी मर्यादा पे हँठ उठाने को ....
देख रहा है सब धृतराष्ट्र के जैसा
अंधा ये कानून हमारा...
और हुए बिवस हैं भीष्म के जैसे
इस समाज में रहने वाले...
कुछ हैं हम
तेरी इज्जत पे दांव लगाने को....
और हर इक मोड़ पे खड़ा है कोई दुर्योधन
तेरी मर्यादा पे हँठ उठाने को ....
देख रहा है सब धृतराष्ट्र के जैसा
अंधा ये कानून हमारा...
और हुए बिवस हैं भीष्म के जैसे
इस समाज में रहने वाले...
कुछ हैं हम
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