सृष्टि नव पल्लवित हुई, अतुल मदन श्रृंगार।
जड़ता में होने लगा, ऊष्मा का संचार।।
पीत मुकुट धारण किये,आये हैं ऋतुराज।
धरणी धानी हो गई, नवल वधू सा साज।।
खेतों में लहरा रहे, सरसों के पीले फूल।
आम्र मंजरी पान में, भँवरे हैं मशगूल।।
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