
संध्या की सांझ में निःसंदेह बैठा हूं
वो आएंगे वापस इसी उम्मीद में बैठा हूं।
जो वादे गुमनाम है अपने सफर पर
उन वादों को काबिल करने की फिकर में बैठा हूं।
जो आस पास से जाने वाले अजनबी पूछते है।
राह में वक्त थामे किसकी राह में बैठा हूं।
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