
आज बरसों बाद शहर की चकाचौंध से परे अपने खेतों में आया तो दिखी, वो "पगडंडी"
पगडंडी, जिस पर चलकर पिता , दादा और उनके पिता जाते थे खेतों में काम करने,
पीढ़ी दर पीढ़ी पसीना बहा कर वे उगाया करते थे फसलें, सबके लिए,
पगडंडी, जिस पर चलकर मां- दादियों ने तपती दोपहर में खेतों में खाना पहुंचाया,
ताकि पिता और दादाओं की मेहनत में कमी ना रहे और जारी रहे ये क्रम,
पगडंडी, जिसके छोर पर है शीशम का एक छायादार पेड़ जो आज भी खङा है अडिग,
पेङ, जिसकी छांव में सुस्ता थे सब मेहनतकश लोग और खेला कर
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