
स्वर्णिम रूप से दमक रही वो,
धवल कुमुदिनी सी एक नार,
चंचल नयनों में एक अनुराग,
चितवन से झरता मधुर संवाद,
देख कर उसकी अप्रतिम काया,
यूं लगे बसंत करे उसका श्रृंगार,
धवल कुमुदिनी सी एक नार,
गालों पर आभा का दर्पण,
ठोड़ी का तिल एक आभूषण,
शरद
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