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यादें! चल ताज़ा हो ले।

अलसाई सुबह जी सबसे पहले याद आती है।

जिसकी आमद की खुशबू से ही ताज़गी छाती है।।

मौसम कोई भी हो रंगत उसी की भाती है।

वो चाय ही है दोस्तों जो हर उम्र में साथ निभाती है।।

ऐसे ही नहीं ये हर घर मे राज़ करती है।

बाग़ान से मर्तबान तक का लंबा सफ़र जो तय करती है।।

मेज़बान की मर्ज़ी से ख़ुद को रंगती है।

और जुबाँ से लगते ही सीधे दिल मे उतरती है।।

चाय की गर्मी से बचपन में माँ सर्दी भगाती है।

जब भीगे है दोस्त सारे, बारिश की बूंदों से।।

तो टपरी की चाय ही गरमाहट लाती है।।

सब सो जाते है, जब पढ़ते वक्त यारों के साथ।

रात के उन पहरों में भी चाय ही जगाती है।।

ऑफिस कैंटीन में जब साथियों की महफ़ि

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