![ग़ज़ल's image](/images/post_og.png)
महफ़िल में आया जब वो क्या थे उस के हाव भाव ।
थकन उदासी कशमकश या मुस्कुराता चाव ।
लेने को सब्ज़ी निकला घिरा भीड़ में पकड़ा गया,
हारा हुआ दल सत्ता सा अब कर रहा घिराव ।
पानी पे चलता देख योगी हंस रहा फ़कीर,
ले जाए पार पैसे में साहिल पे लगी नाव ।
जंगल तो सारे जल चुके इक वृक्ष खड़ा मौन ,
उड़ती चिता से राख कोई तापता अलाव ।
पैवंद हैं कबा पे
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