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तरस रहे हैं

यहां हम हैं जो बरसों से इक बूंद को तरस रहे हैं
मेरे हिस्से के बादल भी न जाने कहां बरस रहे हैं
मैं जिस राह गुमान से गुजरता था कभी
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