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थोड़ा सा थका हूंँ मगर रुका नहीं हूंँ।

मेरी लेखनी मेरी कविता
 थोड़ा सा थका हूंँ मगर रुका नहीं हूंँ
(कविता)

थोड़ा सा थका हूंँ
 मगर रुका नहीं हूंँ।

जिंदगी की हालातों के आगे
झुका नहीं हूंँ 
कांच के रिश्ते लिए फिर रहा हूंँ
 पत्थरों के शहर में
 ठोकरें बहुत खाईं
 मगर झुका नहीं हूंँ।

तेरी यादों को
 दिल से
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