!["सपनों की एक व्यवस्था "
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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
"सपनों कीएक व्यवस्था"
(कविता)मैं संस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
सपनों का ताना-बाना बुनने ,उन्हें पूरा करने की एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ ,
मैं संस्था हूंँ ।।
मैं ज्ञान सभी को देती हूंँ, शिक्षा की गागर भरती हूंँ, सच का संज्ञान कराती हूंँ मेहनत करना हर पग, पग पर ,मैैं बच्चों को सिखलाती हूँ।
जीवन में आगे बढ़ने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
गुजरे जीवन पथ पर
"सपनों कीएक व्यवस्था"
(कविता)मैं संस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
सपनों का ताना-बाना बुनने ,उन्हें पूरा करने की एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ ,
मैं संस्था हूंँ ।।
मैं ज्ञान सभी को देती हूंँ, शिक्षा की गागर भरती हूंँ, सच का संज्ञान कराती हूंँ मेहनत करना हर पग, पग पर ,मैैं बच्चों को सिखलाती हूँ।
जीवन में आगे बढ़ने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
गुजरे जीवन पथ पर
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