
मेरी लेखनी मेरी कविता
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ
(कविता)
ख्वाबों से अपने जगने लगा हूंँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ।
उड़ता था शायद कभी ऊंचे गगन में
जमीं पर आज पैर रखने लगा हूंँ।
लफ्जों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को अब मैं पढ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ
(कविता)
ख्वाबों से अपने जगने लगा हूंँ
जिंदगी को बेहतर समझने लगा हूंँ।
उड़ता था शायद कभी ऊंचे गगन में
जमीं पर आज पैर रखने लगा हूंँ।
लफ्जों की मुझको जरूरत नहीं है
चेहरों को अब मैं पढ
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