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हांँ मैं एक औरत हूंँ( कविता) महिला दिवस विशेषांक

मेरी लेखनी मेरी कविता 
हांँ मैं एक औरत हूंँ
 (कविता) महिला दिवस विशेषांक ।

दिल में बस जाए
वह मोहब्बत हूंँ
कभी बहन कभी
ममता की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।

मेरे आंँचल से बने
चांँद सितारे
मैं अपने आप में
रब की मूरत हूंँ
हांँ मैं एक औरत हूंँ।।

हर दर्द छुपाती सीने में 
जुबां पर है ना आने देती हूंँ। 
जीवन की रचना करती हूंँ।
 जीवन की एक इबारत हूंँ
 हांँ मैं एक औरत हूंँ ।।

मेरे होने से ही यह कयाना
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