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अनजान पथ के राही (कविता)

मेरी लेखनी,मेरी कविता 
 अनजान पथ के राही 
(कविता)

ऐ पथिक अनजान पथ के,
दूर तू जाता कहांँ?

पहनकर वीरों का बाना ,
कर सजाकर अस्त्र नाना 
एक लंबित राह पर 
चलकर तू जाता है कहांँ?
ऐ पथिक अनजान पथ के 
 दूर तू जाता कहांँ? 

हो खड़ा रुक कर बता ,
क्या हुई तुझसे खता ?
छोड़कर अपनों को पीछे 
बृहद विशाल गगन
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