ज़िंदगी की इस पटरी पर,
वक्त रेल सा गुज़र रहा है...
मैं ख्वाहिशें लिए वही खड़ा हूं,
फ़िर इक आज़ गुज़र रहा है...
हैरान हूं पतझड़ के इस दौर से,
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ज़िंदगी की इस पटरी पर,
वक्त रेल सा गुज़र रहा है...
मैं ख्वाहिशें लिए वही खड़ा हूं,
फ़िर इक आज़ गुज़र रहा है...
हैरान हूं पतझड़ के इस दौर से,