बैठकर जब अकेले में यूँही,
अक्सर खुद क़ो सोचता हूँ मैं,
पुराने वक़्त की बीती बातों में,
इस कद्र गुम हो जाता हूँ मैं,
जैसे कोई शख्स टूटा है मुझमें यूँ कि,
मानो शाख से टूटा कोई पत्ता सा हूँ मैं,
मानो किसी की ह्रदय वेदना में
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