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विधवा दुल्हन !

एक दुल्हन है जिसकी सेज पर सजे हुए पुष्प हैं,
जिसके अधरों पर लालिमा है उस होने वाले चुम्बन की, 
जिसके नयन व्रीड से शुष्क हैं !

वो परिमल, वो सौंदर्य, वो लाली, वो लहंगा, वो चांद जो चढ़ा हुआ गिगनारों में,
वो जो महकता उसके इत्र में, नयनों के कज्जल में, साज - श्रृंगारों में,

जिसकी प्रतिमा स्थापित है हृदय में मन में,
क्या वो सदा साथ देगा उसका जीवन में ?

क्या प्रियतम के लिए वह नित सिंदूर सजा पाएगी,
क्या वो सदा चूड़ियां पहनेगी, काजल लगाएगी ?

क्या वो सीमा पर खड़ा हुआ भी,
उसे याद रखता होगा ?
क्या उसे भी स्व में कुछ कम, कुछ अपूर्ण लगता होगा ?
क्या उसे मन में न आएगा उस अजन्मी नन्ही जान को बाहों में भरना,
क्या उसे याद न आएगा उसका रोना, लाते मारना, कुलांचे भरना ?

वह इन्ही विचारों में थी मग्न, भूतार्थ स
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