
मेरे इश्क का रंग सफ़ेद था,
नियति को लगा फरेब था।
लुहलुहान कर कोरा पन्ना,
बस खनक रहा पाज़ेब था।
रिसती आँखें ख़्वाब टूटे,
बढ़ गए तन पर मन छूटे।
समाज-संधि प्रीत-
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मेरे इश्क का रंग सफ़ेद था,
नियति को लगा फरेब था।
लुहलुहान कर कोरा पन्ना,
बस खनक रहा पाज़ेब था।
रिसती आँखें ख़्वाब टूटे,
बढ़ गए तन पर मन छूटे।
समाज-संधि प्रीत-